रविवार, 8 सितंबर 2013

प्रो. दिलीप सिंह विचार-कोश - 1

अनुवाद 

अनुवाद अपनी प्रकृति में एक अनुप्रयुक्त विधा है अतः वह प्रयोजन और प्रयोक्ता के दबाव से मुक्त नहीं हो सकता. (‘समतुल्यता का सिद्धांत और अनुवाद’; अनुवाद : सिद्धांत और समस्याएँ; (सं) रवींद्रनाथ श्रीवास्तव, कृष्णकुमार गोस्वामी, पृ.47)

एक भाषा के किसी पाठ (Text) का सहपाठ (Co-text) के रूप में रच्नान्तार्ण अनुवाद कहलाता है.  (‘समतुल्यता का सिद्धांत और अनुवाद’; अनुवाद : सिद्धांत और समस्याएँ; (सं) रवींद्रनाथ श्रीवास्तव, कृष्णकुमार गोस्वामी, पृ.44)

अनुवाद करते समय स्रोत भाषा के पाठ के भाषिक उपादानों के समतुल्य लक्ष्य भाषा के भाषिक उपादान चुन लिए जाते हैं.  (‘समतुल्यता का सिद्धांत और अनुवाद’; अनुवाद : सिद्धांत और समस्याएँ; (सं) रवींद्रनाथ श्रीवास्तव, कृष्णकुमार गोस्वामी, पृ.45)

आज अनुवाद केवल पाठ की संरचना तक सीमित न रहकर भाषा चयन, भाषा वैविध्य और भाषा के शैलीय पक्षों तक विस्तृत है. (अपनी बात, अनुवाद का सामयिक परिप्रेक्ष्य)

अनुवाद की भूमिका

भारत में प्रयोजनमूलक रूप में भारतीय भाषाओं के विकास में अनुवाद की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता. (अपनी बात, अनुवाद का सामायिक परिप्रेक्ष्य)

अनुवादक की भूमिका 

अनुवादक की भूमिका बहुआयामी होती है - पाठक की, भाषा विश्लेषक की और द्विभाषी की. (अपनी बात, अनुवाद का सामायिक परिप्रेक्ष्य)



भाषा की भीतरी परतें
भाषाचिंतक प्रो. दिलीप सिंह अभिनंदन ग्रंथ
प्रधान संपादक - ऋषभदेव शर्मा
वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली,
2012 प्रथम संस्करण, ९९५/-

1 टिप्पणी:

CHHABILA ने कहा…

बहुत उपयोगी पुस्‍तक है - छात्रों के हित में